हर अल्फाज है कम ए माँ

आज वर्षों बाद फिर देखा आपका चेहरा।
पलके रुकी और आंखें गई थी थम।
गले लग कर भूला मे सारे गम।
और
फिर क्या सांसे हो गई थी मध्यम।
यह अल्फाज बहुत थे कम।
जितने भी लफ्ज़ बोलूं ए मां वह आपके लिए फिके है हरदम।

दूर था तो तेरे ख्याल से आंखे हो जाती थी नम।
आज याद आई तेरी मां तो मिलने आ गए हम।

विश्वास

 

अपने अंदर विश्वास को इतना कठोर बना लो कि मानो ही मत कि मैं कमजोर हूं।

फिर होना क्या है जिस खेल में हम होंगे हिम्मत से हारेंगे लेकिन कभी हिम्मत नहीं हारेंगे ।

अगर हमारे अंदर अहंकार हैं और उस अहंकार के वजह से दूसरों को हराना चाहते हैं ।

तो हम जीत भी जाएं पर वह हमारी जीत नहीं होगी।

अहंकार ने इंसान को सिर्फ बेबश किया है जीत तो दूर की बात है।

इंसान के विचार में सादगी होनी चाहिए क्योंकि सरलता ही इंसान का सबसे बड़ा उपहार है।